राहुल गांधी-अखिलेश को कितना नुकसान?
मायावती एक बार फिर मुसलमानों का भरोसा जीतने की कोशिश कर रही हैं। 29 अक्टूबर को पार्टी के लखनऊ कार्यालय पर दलित-मुस्लिम भाईचारा कमेटी की बैठक में उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि वे मुसलमानों के बीच जाकर काम करें। वे उन्हें यह भरोसा दिलाने की कोशिश करें कि मुसलमानों का भविष्य बहुजन समाज पार्टी के शासनकाल में ही सुरक्षित है। वे मुसलमानों को उन कार्यों की लिखित जानकारी दें जो मायावती ने मुसलमानों के लिए किए थे। लेकिन क्या मुसलमान एक बार फिर बसपा के साथ जाएगा? 2007 में दलित-ब्राह्मण और मुसलमान समीकरण के सहारे ही मायावती ने सफलता पाई थी। यदि मुसलमान मायावती के साथ गया तो इससे राहुल गांधी और अखिलेश यादव को कितना नुकसान होगा जिन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में मुसलमानों और दलितों के समर्थन के सहारे भाजपा को गहरी चोट पहुंचाई थी?
दरअसल, बीते दिनों में मुस्लिमों के वोट बैंक बनने से जुड़ी कई तरह की बयानबाजी हुई है। जहां भाजपा ने सपा-कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगाए हैं, वहीं यह दोनों पार्टियां भाजपा पर बिहार में मुसलमानों को टिकट न देने को लेकर निशाना साध रही हैं। ऐसे दौर में मायावती की मुसलमानों को अपने करीब लाने की कोशिश रंग दिखा सकती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें