राजा और सर्प






एक दिन एक राजा ने स्वपन देखा कि कोई परोपकारी साधु उससे कह रहा है कि बेटा कल रात तुझे एक विषैला सर्प कटेगा और उसके काटने से तेरी मृत्यु हो जाएगी। वह सर्प आमुक पेड़ की जड़ में रहता है। पूर्व जन्म की शत्रुता का बदला लेने के लिए वह तुझे काटेगा। प्रातःकाल राजा सोकर उठा और स्वपन की बात पर विचार करने लगा। राजा सोचने लगा कि मेरा स्वपन सच ही होगा। अब मुझे आत्मरक्षा हेतु क्या उपाय करना चाहिए ? उसने निर्णय किया कि वह सर्प के साथ मधुर व्यवहार करके उसका मन बदल देगा। संध्या होते ही राजा ने उस पेड़ की जड़ से लेकर अपनी सय्या तक फूलों का बिछौना बिछवा दिया, सुगंधित जलों छिड़काव करवा दिया, मीठे दूध के कटोरे जगह-जगह रखवा दिए और सेवको कह दिया कि रात को जब सर्प निकले तो कोई उसे कष्ट न पहुंचाएं।

रात को 12:00 बजे सर्प अपनी बॉबी में से फुफकारता हुआ निकला और राजमहल की तरफ चल दिया। वह जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया, वैसे-वैसे आनंदित होता गया। कोमल बिछौने पर लेटता हुआ, मनभावनी सुगंध का रसास्वादन करता हुआ, मीठा दूध पीता हुआ वह राजमहल की ओर बढ़ रहा था। उसके क्रोध का स्थान प्रसन्नता ने ले लिया। जब वह राजमहल पहुंचा तो देखा कि प्रहरी उसे तनिक भी कष्ट नहीं पहुंचा रहे हैं। उसे लगा कि हानि पहुंचाने वाले के साथ जिस राजा का इतना मधुर व्यवहार है तो उसे काटना ठीक नहीं। वह राजा से बोला- "तुम्हारे मधुर व्यवहार ने मुझे शत्रु से मित्र बना दिया है। मैं बहुमूल्य मणि तुम्हे भेंट करता हूं इसे रखो।" इस तरह सर्प राजा का मित्र बनकर वापस चला गया। सद्व्यवहार से शत्रु भी मित्र बनाया जा सकता है। 

 

 



 



 













 





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