सम्मान

महाभारत एक दूसरे को सम्मान ना दे पाने की ही भीषण प्रतिक्रिया के रूप में हुआ था। बचपन में दुर्योधन राज मध्य मैं पांडवों को सम्मान ना दे सका। भीम सहज प्रतिक्रिया के रूप में अपने बाल का उपयोग करके दुर्योधन को अपमानित तिरस्कार करने लगे। द्रोपती सहज परिहास में भूल गई कि दुर्योधन को अंधे के बेटे अंधे संबोधन से अपमान का अनुभव हो सकता है। दुर्योधन  द्वेष वेस नारी के महत्व भूल गया तथा द्रोपती को भारी सभा में अपमानित करने पर उतारू हो गया। यही सब कारण जुड़ते गए तथा छोटी -छोटी शिष्टाचार की त्रुटियों की चिंगारियां भीषण ज्वाला बन गई। यदि परस्पर सम्मान का ध्यान रखा जा सका  होता तो असिस्ट पर अंकुश रखा जा सका होता, तो स्नेह बनाए रखने मैं कोई कठिनाई ना होती। भीष्म पितामह और वासुदेव जैसे युग पुरुषों के प्रभाव का लाभ मिल जाता तथा एक महा समर टल जाता।  


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